अब आगे...
पिछला पंद्रह दिन शानदार रहा। अनुक्रम में लिखूं तो 12 तारीख को सवेरे मुंबई से निकली ट्रेन और 25 जनवरी की दोपहर वापस लौटी उसी ट्रेन के बीच जो कुछ घटित हुआ वह असाधारण था। फर्सत से उस बारे में अगर बात की जाए तो लच्छेदार बात बनेगी जो होते-होते कई कप चाय-कॉफियां खत्म हो जाएगी। दरअसल मजेदार तो यह था कि 12 को सुबह एलटीटी से बेगूसराय के लिए मेरी गाड़ी निकलनी थी और मुझे 11 तारीख को पुणे जाना पड़ा था। पुणे से देर शाम जब मैं मुंबई लौटा तो ड्राइवर को घर पर ही रुकवा लिया था और कल होकर उसी गाड़ी से एलटीटी तक आ गया। उस वक्त मुझे लगा था कि सबकुछ बहुत अच्छे से हो जाएगा क्योंकि शुरूआत जबर्दस्त हुई है। अगर पुणे जाना न होता तो हो सकता है कि 12 की सुबह सात बजे की ट्रेन पकड़ने के लिए मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ती!
पापाजी का जन्मदिन न याद रख पाने का ये पश्चाताप जैसा था! करीब एक-डेढ़ महीने में अयोध्या जाने का ख्याल आया, फिर इसमें नई गाड़ी लेने की योजना का समावेश हुआ और फिर तय हुआ कि महाकुंभ जाया जाएगा हालांकि सोच चित्रकुट तक चली गई थी लेकिन भाग्य की छुट्टी और अन्य कुछ पहलुओं के कारण प्रयागराज-अयोध्या-नंदीग्राम होकर गाड़ी वापस बेगूसराय की ओर मोड़ ली गई। अधिकतम रफ्तार 156 किलोमीटर प्रति घंटा की रही जो सोचकर मुझे खुद भी शायद आगे जाकर यकीन नहीं होगा।
कल जब मैं वापस मुंबई आ गया तो लगा कि कुछ याद ही नहीं। मैंने तस्वीरें देखी और जितना समय मिल पाता है उसमें चाहा कि बार-बार कुछ वीडियो को देखूं लेकिन मन अब अगली योजना में रमता जा रहा है। कुछ ऐसा जो बहुप्रतिक्षित है, जो और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण है और जो परमपिता के साथ रहने से ही संभव हो पाएगा जैसे ये दौरा संभव हो पाया।
यह श्री राम!
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