Saturday, September 7, 2024

श्री सिद्धीविनायक का दर्शन

                                                गणेश चतुर्थी में चमत्कार

जो हुआ वह महज संयोग जैसा नहीं लग रहा था। भीड़-भाड़ और धक्का-मुक्की देख-देख कर कोफ्त हो चुके मन के साथ गणपति के किसी भी पंडाल जाने की इच्छा नहीं हो रही थी। लाईव था, सो जाना था। श्यामा के साथ पहले ही बात हो गई थी कि लाईव लालबाग का राजा के बजाय जीएसबी गणपति परिसर से किया जाएगा। लगा था कि वहां भीड़ उतनी नहीं होगी और व्यवस्था भी शायद थोड़ी अच्छी हो। 

दोपहर एक बजे के करीब मैं जीएसबी पहुंच गया। कैमरामैन गौरव बोरीवली से दादर आ चुका था। मैंने किंग सर्कल पर उतरकर गाड़ी उसके लिए भेज दी। थोड़ी देर में पता चला कि उसका और ड्राइवर का तालमेल नहीं बैठ पा रहा था। इस बीच जो डेढ़ घंटा बीता वह भंवर में बीता।

गाड़ी छोड़ने के करीब पंद्रह मिनट तक मैं जीएसबी गणपति परिसर में जाने के रास्ते तलाशते रहा। एक गेट से जाने की कोशिश की तो वहां पास मांगा गया। मुझे पता नहीं था किसी पास के बारे में तो मैं वहां से खिसक गया। थोड़ी देर में फिर अनाउंसमेंट सुनाई दी कि स्काई वाक से दर्शन पांच-दस मिनट में हो रहा है। मैंने उस रास्ते से जाकर सोचा दर्शन कर लूं जब यहां इतनी देर हूं ही तो। जैसे ही गया नीचे एक बंदे ने रोक लिए और एक रास्ता बताकर उधर से आने को कहा। इसी सब कारण से मैं जाना ही नहीं चाह रहा था और ऊहापोह में था। मैं दूर जाकर डिवाइडर के पास बड़े से पीपल के वृक्ष के नीचे खड़ा हो गया। वहां से मैं स्काईवाक को देख रहा था। जब कतार कम होती तो सोचता कतार में लग जाऊं लेकिन फिर कतार बड़ी हो जाती। इस बीच बारिश शुरू हुई और मैं भींग गया। करीब डेढ़ घंटे के बाद वहां गौरव टैक्सी से आया और फिर थोड़ी देर में मेरा ड्राईवर भी आ गया। हमलोग वहां से ऑफिस आ गये बिना दर्शन किये। मन भारी था लेकिन उससे ज्यादा अशांत था।

ऑफिस आने के बाद करीब साढ़े चार बजे मालू्म चला कि शाम में आठ बजे एक लाईव है। गौरव और मैंने मिलकर तय किया कि कहीं भीड़भाड़ वाले पंडाल में जाने से अच्छा ये होगा कि ऑफिस के पास ही सिद्धीविनायक मंदिर के पास से लाईव दे दिया जाए और फिर ऑफिस में बैकपैक जमाकर के घर निकल जाया जाए। दोनों तीन-चार घंटे तक समय होने का इंतजार करते रहे और फिर सिद्धीविनायक करीब पौने आठ बजे पहुंचे। बाहर से भीड़ कम दिख रही थी। कैमरा लेकर जैसे ही परिसर में जाने की कोशिश की पुलिस ने रोक दिया। पीआरओ ऑफिस को बहुत तरह से मनाना भी काम नहीं आया और हमलोग बाहर आ गये। वहां बैठे एक कांस्टेबल से पता चला कि कोई कराड़े जी हैं जो पुलिस अधिकारी हैं उनसे बात करनी होगी। संयोग ऐसा बना कि वह पास में ही मिल गये। मैंने अंदर जाने की बात उनसे कही ही नहीं बस इतना कहा कि हमें मंदिर के दरवाजे के बाहर एक कोने में थोड़ी देर कैमरा से लाईव करने दें, वे मान गये। उस वक्त आठ बजकर दस मिनट हो रहा होगा। दिल्ली बात की तो पता चला कि लखनऊ में कोई ईमारत गिर गई है और गणपति का हमारा लाईव पौने नौ बजे के करीब होगा। अब हमें वहां आधा घंटा बिताना था। इस दौरान मैंने एक बार कराड़े जी से कोशिश की कि मंदिर के अंदर से लाईव की अनुमति ले लूं लेकिन वह नहीं माने। उनका हावभाव ऐसा था कि हमारी महत्वाकांक्षा बढ़ रही है। यहां जगह मिला तो अब हम अंदर चाह रहे हैं।

आठ बजकर तीस मिनट हो रहे होंगे शायद! गरमजोशी के साथ सामने से वेणुगोपाल जी आते दिखे। वेणुगोपाल जी विधायक तमिल सेलवन के साथ रहते थे और कई तरह की स्टोरी में उन्होंने लाईन-अप किया था। विमुद्रीकरण, मन की बात, जयललिता की मौत और अन्य कार्यक्रमों में वह सहयोग करते थे और हमारा अच्छा परिचय था। 

वेणुगोपाल जी ने अपने साथ खड़े एक भगवाधारी व्यक्ति से मिलवाकर कहा कि ये यहां के ट्रस्टी हैं। मुझे तब थोड़ा-सा आभास हुआ कि कुछ चमत्कार-सा होने वाला है। औपचारिक परिचय के बाद मालूम चला कि वह और कोई नहीं बल्कि राजाराम देशमुख थे जो वहां के ट्रस्टी थे। बातचीत के दौरान मैंने उन्हें बताया कि हम अंदर से लाईव करना चाहते हैं। इस बीच उनके साथ खड़े मिहिर जी मुझे इस बात को लेकर उत्सुक दिखे कि मैं देशमुख जी का इंटरव्यू लूं। ये क्विट प्रो क्वो जैसा था लेकिन संयोग था। मैंने नोटिस किया कि काकड़े जी ने किसी को बोलकर एक पेपर मंगवाया जो पहले से साईन किया हुआ था। मुझे उसपर नाम और मोबाईल नंबर लिखने को बोला गया। ये छोटी सी औपचारिकता करके हम अंदर आ गये। देशमुख जी के साथ होने की वजह से हमारी दुबारा जांच भी नहीं हुई और हम सीधे परिसर में आ गये। बात यहीं खत्म नहीं हुई। देशमुख जी ने बोला चलिए अंदर से करते हैं। अंदर मतलब मतलब जहां विराजमान हैं श्रीसिद्धीविनायक और जिनके दर्शन के लिए उमड़ी थी उतनी भीड़ कि लोग परिसर में नीचे बैठे, लेटे, पड़े थे। 

आठ बजकर चालीस मिनट हुए थे। सबलोग अपनी-अपनी जगह ले चुके थे। मन गदगद था कि गणेश चतुर्थी का ऐतिहासिक लाइव सिद्धीविनायक से मैं करूंगा जो कि स्मृति के तौर पर हमेशा मेरे साथ रहेगा। इस बीच एक विघ्न का साक्षात्कार हुआ। जो लाईव-यू से बाहर नौ एमबीपीएस की स्पीड मिल रही थी उसकी स्पीड अंदर इक्यावन केबीपीएस पर हो गई। लाईव अच्छे से हो इसके लिए कम से कम सात सौ केबीपीएस की स्पीड चाहिए होती है। आठ बजकर तैंतालीस मिनट हो चुके थे और अयूब का असाइनमेंट से फोन आ चुका था। रक्तचाप अनियंत्रित था और मैं लंबी सांसे लेकर संतुलित रहने की कोशिश करता जा रहा था। लाईव-यू को इधर-उधर करने से भी स्पीड नहीं आई तो डिले को तीन सेकंड से बढ़ाकर दस सेकंड कर दिया। डिले का मतलब एंकर और रिपोर्टर के बीच संवाद के दौरान का अंतराल होता है। अगर डिले ज्यादा है तो एंकर की बात खत्म होने के उतनी देर बाद रिपोर्टर की तरफ से जवाब आता है। कई बार ऐसा होता है कि एंकर को लगता है कि उसकी आवाज रिपोर्टर तक नहीं पहुंची और वह यह बोलकर कि लगता है मेरी आवाज योगेश तक नहीं पहुंच रही है, आगे बढ़ जाता है। नेटवर्क फिर भी नहीं आया तो लाईव के बदले एक इंटरव्यू करने का फैसला करके मैने वहीं राजाराम देशमुख का वन-टू-वन कर लिया। उस वक्त मन में था कि भले लाईव न हो लेकिन इनका ऑन-कैमरा बाईट करना ही है। वन-टू-वन जैसे ही हुआ गौरव ने इशारा किया कि स्पीड दो हजार केबीपीएस हो गई है यानि कि करीब-करीब दो एमबीपीएस। यह एक चमत्कार ही था, अगर संयोग नहीं कहें तो। अब दूसरी चुनौती आ गई। अयूब ने डिले पूछा तो मैंने दस सेकंड बता दिया। सुनते ही उसने बोला कि नहीं ले पाएंगे। मुझे झूठ बोलना पड़ा कि बस छह सेकंड है और मैं एंकर की बात पूरी होने से पहले ही बोलना शुरू कर दूंगा। अयूब के साथ संबंध अच्छे रहे हैं। उसने बोला आप संभाल लीजिएगा।

लाईव संपन्न हुआ। मन को शांति मिली क्यूंकि इज्जत रह गई। राजाराम देशमुख और उनके लोगों को लाईव मोबाईल पर दिखाया। बात यहीं खत्म नहीं हुई। देशमुख जी ने उसके बाद अपने साथ हमलोगों को ले जाकर श्री सिद्धीविनायक का दर्शन करवाया और छप्पन भोग प्रसाद भी मंगवा कर हमें दिया।

वहां से निकलते हुए हम और गौरव बस यही बात कर रहे थे कि हमने एक चमत्कार को होते हुए देखा।


--- और अंत में...

राजाराम देशमुख जी, गौरव, मैं और वेणुगोपाल जी



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