Friday, October 7, 2022

 

                                                          उम्र के इस चौराहे पर

तीस के बाद का जीवन कई तरह के नए अंतर्विरोधों को समेटा होता है। प्रबल होती जवाबदेहियां, घनी अनिश्चितताओं में बीतते महीने और कई तरह के आंतरिक और बाह्य परिवर्तनों के बीच कनपटी से सटे बालों के पकने का जो सिलसिला तीस के बाद शुरू होता है वह आदमी को कुछ भी करने का मौका नहीं देता।

व्यावहारिक जीवन में रुपयों-पैसों का हिसाब-किताब करते-करते आदमी एक दुकानदार की तरह बन जाता है। घर चलाने वाला हर आदमी एक दुकानदार की तरह ही सोचता और करता है। बस मुनाफा के बजाय उसका ध्यान बचत पर रहता है। एक को मोबाइल बिल, दो को अखबार का बिल, तीन को डी-मार्ट, चार को म्युच्युअल फंड, दस को कमरे का किराया, चौदह को बिजली बिल, गाड़ी का पेट्रोल वगैरह करते-करते आदमी कब बदली भूमिका में आ जाता है उसे भी समझ नहीं आता।

जैसे घूमती धरती महसूस नहीं होती वैसे ही बदलता माहौल और उम्रदराज होते लोग भी महसूस नहीं होते। जो चीजें साथ-साथ हो रही है वह भला महसूस हो भी तो कैसे! 

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