Sunday, August 7, 2022

बुआ

 भरी-भरी से लगने वाले इस दुनिया में क्या अकेला मैं ही हूं जो किसी खाली जगह की तलाश में हर दम लगा रहता हूं! किसी को हंसते हुए देखता हूं तो उसके पीछे की वजह सोचने लगता हूं। हंसता हुआ आदमी अच्छा तो लगता है लेकिन शक होता है कि वह वास्तव में हंस रहा है या फिर बस हंस रहा है!


बुआ को समझने की अजीब सी बेताबी मन में कुछ समय से रही है। एक बार उसके घर जाने का मौका भी मिला है जिसके बाद उसके रहन सहन, जिम्मेदारियों को निभाने के उसके तरीके एवं दुनियादारी से जुड़ी उसकी बाकी चीजों को लेकर भी मन में तरह-तरह की बातें उभरती रहती है।


एक आदमी संघर्ष करते हुए जीता है और जीते जीते एक दिन पंचतत्व में विलीन हो जाता है। पिछले दो-तीन सालों में कई लोगों के देहांत होने की खबरें सुनी है और कुछ पर तो इतना विचलित हो गया कि उस पर छोटे-मोटे संस्मरण भी यहां वहां लिख दिए। कुछ दिनों पहले बुआ ने भी अपने मरने की बात कही थी। दरअसल वह आपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित था और अपनी बेटी को कहीं काम दिलाने के लिए कह रहा था। इसी दौरान उसने कहा था कि उसकी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है तो वह चाहता है कि बच्चे कम से कम कुछ कर लें।


इतनी व्यस्तता के बावजूद 1 जुलाई की दोपहर को भूलने में मुझे दिक्कत आ रही है। घनघोर बारिश के बीच प्रवर्तन निदेशालय के समक्ष मैं छाता लेकर खड़ा था और एक मामले में संजय राऊत की पेशी थी। बुआ हमेशा से काम के प्रति समर्पित सा दिखा है। इतनी बारिश के बावजूद उसने बजाए कैमरा बंद करके गाड़ी में रखने के कैमरे को मोटी पॉलीथिन से ढक दिया था और मोर्चे पर ऐसे डाटा हुआ था जैसे कोई सेना का कोई जवान सीमा पर डटा रहता है। मूसलाधार बारिश में कैमरे को भी मित्र देखने का वह अनुभव में भुला ही नहीं पा रहा हूं। मुझे ठीक ठीक याद है कि शाम में जब लाइव के लिए उसने कैमरा ऑन किया तब तक कैमरा खराब हो चुका था। उसकी आंखों की चिंता देखने के लिए मुझे ज्यादा परिश्रम नहीं करना पड़ रहा था। उसने भरसक कोशिश की कैमरे को कई बार इस चार्ट किया इधर-उधर फोन घुमाया लेकिन कैमरा काम नहीं कर रहा था।


इस घटना के बाद बुआ का फोन कई बार ऑफ होने लगा। मैं अपनी बेचैनी किसी से बता भी नहीं पा रहा था और मन ही मन इसको लेकर अजीब तरह के तनाव से घिरा हुआ रहता था। बुआ की गरीबी जानते हुए भी मैं उसके लिए कुछ भी नहीं कर पा रहा था। आखिरकार करीब 20 दिनों के बाद बुआ से बात हुई तो उसने वही बताया जिसका मुझे डर था। बुआ गहरे अवसाद में जा चुका था क्योंकि कैमरे के कारण उसे काम मिलना भी बंद हो चुका था और कैमरा ही उसकी रोजी रोटी का एकमात्र माध्यम था। ‌ प्रतिदिन महबूबा के बारे में सोचता खुद को कोसता और फिर असाइनमेंट पर किसी दूसरे स्ट्रिंगर के साथ काम पर लग जाता।


फिर एक दिन मुझे शायद ऑफिस से मालूम चला कि बुआ का कैमरा ठीक है और वह मेरे साथ असाइनमेंट पर आ रहा है। मन इस बात को लेकर डरा हुआ था कि पता नहीं उसने किस कीमत पर कैमरा कहां से लिया होगा और उसके चेहरे का सामना में कैसे कर पाऊंगा। आखिरकार 1 अगस्त को मैं वापस बुआ के कैमरे के सामने आया। यह संयोग ही था कि उस दिन संजय रावत की गिरफ्तारी हो गई थी और उसी के संदर्भ में मैं रिपोर्टिंग कर रहा था। बुआ अपने चिर परिचित अंदाज में माथे पर टीका लगा कर आया था और पूछने पर उसने बताया कि 5 टके के भाव से उसने डेढ़ लाख रुपया का कर्ज लिया है और ₹6000 हफ्ता देना है उसे। मैंने पहले भी कई बार सोचा था कि बुआ के कैमरे के लिए ट्विटर पर क्राउडफंडिंग करूंगा लेकिन उसमें बहुत ज्यादा ही जोखिम था जो बुआ के साथ साथ ऑफिस को भी दिक्कत में डाल देता।


बरहाल कोशिश तब से यही रही की बुआ को मैं ज्यादा से ज्यादा असाइनमेंट पर अपने साथ ले चलूं ताकि उसे ज्यादा पैसा मिले और वह कर्ज से निजात पा सके लेकिन उस 1 जुलाई को एक और बात बुआ ने कही थी जो मन में घर कर गई। दरअसल उस दिन लाइव देते समय मूसलाधार बारिश में बुआ को एक फोन आया था जिसके बाद उसका चेहरा सूख सा गया था। बुआ ने बताया कि उसकी पत्नी गिर गई है। मेरे बोलने पर की वह तत्काल घर चले जाए मैं यहां देख लूंगा जरूरत पड़ी तो मैं मोबाइल से रिकॉर्डिंग कर लूंगा और यह बात किसी को बताऊंगा भी नहीं वह नहीं माना। पिछले दिनों जब बातचीत के क्रम में बुआ से उसकी पत्नी का हाल जाना तो उसने एक हारे हुए योद्धा की तरह कहा कि पैसे नहीं हैं। पैसे इलाज में लगाएंगे तो भी


No comments:

Post a Comment