Sunday, November 28, 2021

दुनिया मेरे आगे

 

                                                                  बे-लाईन

स्कूल में कक्षा शुरू होने से पहले होने वाली प्रार्थना के लिए हम अपनी जीवन में पहली बार कतार में लगते हैं। अबोध बच्चे तब कहां जान पाते हैं कि आगे पूरा जीवन इसी अभ्यास को दुहराते रहना है!

कोविड का दौर खत्म होने को आया है। करीब-करीब सभी लोगों ने टीके ले लिए हैं और निश्चिंतता उनमें आई है। पहले की तरह अब कोविड की जांच के लिए जांचकेंद्रों पर लोगों की भीड़ नहीं है। कुछ राज्यों ने वहां आने से कुछ समय पहले तक का आरटीपीसीआर जांच नेगेटिव रहने की शर्त लगा दी है। 

कुछ दिनों पहले तबियत ठीक नहीं लगी। खांसी बढ़ती जा रही थी और चिंता घर कर गई। जांच केंद्र के एक स्टाफ का नंबर संयोग से फोन में सेव था। उसे कॉल किया तो उसने टेस्टिंग के लिए आने को कह दिया। चौंकाने वाली बात यह थी कि वह रविवार का दिन था। मतलब कि सरकार अब भी पहले की तरह ही मोर्चा संभाले हुए थी। निजी अस्पताल जांच के लिए आज भी आठ सौ के करीब रुपये वसूलते हैं लेकिन भला हो कि देश में अभी भी सरकार नाम की चीज है जो दस रुपये में कोविड की आरटीपीसीआर कर देती है। जब जांच केंद्र पर पहुंचा तो वहां सन्नाटा पसरा था, लगा कि शायद स्टाफ जा चुके हैं। अंदर गया तो दो-तीन लोग बैठे दिखे। बातचीत में पता चला कि वह अस्पताल के स्टाफ हैं। बामुश्किल पांच मिनट में जांच पूरी हो गई। गजब है न कोई कतार न कोई किचकिच!

ऐसे समय में जब हर तरफ कतार है, वेटिंग है, होल्ड है, अनिश्चितता है, ऐसे में कामोठे का यह अनुभव शानदार रहा। हालांकि दफ्तर से निकलते हुए कई बार बस भी फटाफट मिली है लेकिन अस्पताल, और वह भी सरकारी, में इस तरह आप जाएं और स्टाफ आपको ऐसे ट्रीट करे कि वह आपका ही इंतजार कर रहा था, सचमुच न भुलने वाला रहा।

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