तीस के बाद काफी कुछ बदल जाता है। जैसे बीस का आदमी बीस से पहले तैयार नहीं रहता वैसे ही तीस का आदमी भी तीस के बाद कभी किसी कोने में बैठकर यह आकलन करता है कि कितना कुछ वह बटोर पाया बीस से! उस बीस से जो कभी अब लौट कर नहीं आएगा!
यूपीएससी का छूटना हुआ भले दो साल पहले हो लेकिन अभी भी लगता है कि कल की ही बात है! उतना रोना नवी मुंबई से पहले उस होटल में हुआ था। दो बार का रोना शायद ही भुलाया जा सके इस दुनिया में! हालांकि दुख, आपदाएं पहले भी आई लेकिन जो आवेग, खीज, रिक्तता का एहसास इन दोनों में था उसका क्या ही कहा जाए!
लातूर से मुंबई के रास्ते में राकेश डोले का मैसेज आना कि यूपीएससी ने फिर वही फाॅर्म निकाला है, दो सेकेंड के लिए सबकुछ थाम गया। जैसे २ मई २०१९ को हुआ था, इस बार भी उसे ही पता करने को कहा और आशंका सही साबित हुई।
अब अपनी उम्र बची नहीं!
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