वे सहपाठी!
कई बार ठहर कर बहुत कुछ याद करने की कोशिश करने के बाद भी अच्छी चीजें याद नहीं आती और कई बार अनायास ही कुछ ऐसी चीजें याद आ जाती है जो मन को झकझोर देती है।
मंगला, घनश्याम, बसंत, रवि, मनीष, राजेंद्र और बिट्टू। मंगला अब नहीं रहा और उसके घर पर जब उसका शरीर लाया गया था तो मैं संयोग से पास से ही गुजर रहा था। भीड़ को देखकर रूका तो मंगला के शरीर पर नजर पड़ी। आजपास महिलायें उसको जगाने की कोशिश करते हुए चित्कारते हुए रो रही थी। उन्हीं महिलाओं में मंगला की मां भी होंगी शायद। मंगला के नाक से पानी निकलता जा रहा था। जितना सुनने को मिला था उसके मुताबिक कहीं डूब जाने की वजह से उसकी मौत हुई थी।
मंगला का वह शरीर देखे भले ही करीब डेढ़ दशक से ज्यादा हो गया हो लेकिन आज भी वह दृश्य याद है। उस ओर फिर कभी जाना नहीं हुआ लेकिन अगर कभी गया तो हो सकता है उस घटना की याद एकदम से ताजा हो जाये।
खैर! स्कूल के दिन दोपहर में सुहाने होते थे। हर तरफ सन्नाटा और फिर सन्नाटे को चीड़ती हुई घंटी की आवाज। खिड़की से बाहर की दुनिया और कॉपी किताबों के बीच गुजरता हुए समय। तब के कई लड़के आज भी मुहल्ले में दिखते हैं लेकिन क्या उन्हें भी वे सब बातें याद हैं जो मुझे याद है! कोई ठेकेदार है, किसी की अपनी कोई दुकान है और कोई मुहल्ले से दूर कहीं कुछ कर रहा है। संभव होता तो सबको वापस एक जगह इकट्ठा करके उन दिनों की बातें करता और सबलोग एकसाथ बैठकर शक्तिमान धारावाहिक के कुछ एपिसोड देखते।
हमें तबतक जातियों के बारे में जानकारी नहीं थी जबतक कि हम थोड़े बड़े नहीं हुए। मनीष और राजेंद्र की दोस्ती की पृष्ठभूमि उनकी जाति से जुड़ी हुई थी और मेरा उनके साथ होना एक संयोगवश था। रवि से लंबा जुड़ाव रहा था। एक अनुशासित परिवार में उसकी परवरिश, उसके चेहरे पर हमेशा घरवाले का डर और उसकी सादगी ने उसे अच्छा दोस्त बना दिया था। स्नातक होते-होते रवि कहीं ओझल हो गया और फिर उससे मिलना कभी नहीं हुआ।
इसी तरह बिट्टू था। किसी रोज दोपहर को जब मां दरवाजे पर गेहूं चून रही थी तो बिट्टू की कोई बात मुझे याद आई थी। करीब दो दशक होने को आए उस दिन को बीते लेकिन स्कूल के दिनों की याद करते हुए वह दिन याद आ ही जाता है।
कितना कुछ बीता दो दशक पहले!
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