शांति और शोर
बिना किसी को दोष दिये जो हिस्से में आया उसे लेते हुए आगे बढ़ते हुए कई साल बीतते चले गये।
जिस अजनबी दुनिया में एक लड़का बीत रहा होता है वहां उसके आसपास होती चीजें उसे अपनी ओर पूरी ताकत से खींचती हैं। कितना कुछ है ; रुपये, सुरक्षा, बचत, सामाजिक तानाबाना, रिश्तेदारी, स्टेटस...!
जीने के लिए सबसे जरूरी क्या है?
यूपीएससी।
जवाब आदर्शवादी न होकर खरा है। दरअसल आदर्शवाद धरातल से बहुत दूर कहीं किसी ओर पड़ा हुआ है ऐसे में उस आदर्शवाद का क्या करना!
कहने को कहा जा सकता है कि जीवन का लक्ष्य शांति हासिल करना है और वह यूपीएससी से हो जाए यह अगर सही होता तो पिछले दिनों तीन-चार आईएएस के स्युसाइड की खबर जो आई वह नहीं आती।
होता यह है कि शांति हर एक मोर्चे पर चाहिए। मसलन आप घर से दफ्तर के लिए निकले। मोड़ पर आपको हरी बत्ती मिली। अगले मोड़ पर भी हरी बत्ती मिली। लेकिन आप शांति से दफ्तर पहुंच जाएं इसके लिए आपको हर मोड़ पर हरी बत्ती चाहिए जो शायद ही संभव है! ऐसे ही पड़ाव-दर-पड़ाव कभी शांति है तो कभी शोर!
कोई परीक्षा परिणाम सालों तक मायूस किये हुए रखता है तो कोई परिणाम कुछ पल की संतुष्टि और भविष्य को लेकर एक सकारात्मक सोच सृजन करता है।
जो परिणाम आज आया वह अपेक्षित ही था बावजूद मायूसी हावी हुई। पहले की मायूसी और फिर इस बार की मायूसी यानि की दोहरी मायूसी।
बहरहाल, लाल बत्ती अभी भी नहीं है। सामने पीली बत्ती ही दिखती है। यानि की बढ़ते ही जाना है गति भले ही थोड़ी कम हो जाए।
क्या पता कहां जाना है क्योंकि जहां का सोच कर अपन चले थे वैसे पड़ाव तो एक-एक कर खतम होते गये। कौन की दुनिया और कबतक का है सफर क्या पता!
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