इस बार का अगस्त
अगस्त एक महीने में ही कई महीना लेकर आया इसबार। बीतते दिनों में कई बार यह संदेह पैदा हुआ कि इसी महीने के किसी दिन घटी कोई घटना शायद पिछले महीने की है और कई बार ऐसा लगा कि इसी महीने के किसी तारीख को होने वाली घटना अगले किसी महीने में होने वाली है।
झटके की शुरुआत उस सन्न कर देने वाले फोनकॉल से हुई जिसने तय कर दिया कि नए ठिकाने की जो संभावना अगस्त के अंतिम दिनों में मिलने वाली थी वह आशंकाओं से घिरी हुई है.
इस फोन कॉल के आगे और पीछे के कुछ दिन दुनियादारी की उलझनों को सुलझाते हुए बीती।
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खाली दिमाग उतना खतरनाक नहीं होता है जितना कि खाली बैठा अफसर। दफ्तर में काफी प्रतिकूल वातावरण रहा। कहीं से शुरू हुई बात कहीं होते हुए कहीं पहुंच गई।
अनुबंध खत्म होने के बाद अगस्त ही पहला महीना था जो बीत रहा था। बीतते हुए इस महीने में बहुत कुछ अप्रत्याशित सा बीता दफ्तर में!
दिल्ली में रहते हुए यह समझ विकसित हुई थी कि किसी कामकाजी आदमी को उसके काम से अलग कर देना उसके लिए सबसे बड़ी सजा होती है।
अन्नू कपूर ने एक शो में किसी अभिनेता के बारे में जिक्र करते हुए कहा था कि किस तरह उस अभिनेता ने अपने संघर्ष भरे दिनों में कई ऐसी घटनाएं देखी थी जब उन्हें उनके मनपसंद काम से हटाकर कोई अलग काम दे दिया जाता था!
उदाहरण के लिए लगातार कोर्ट कवर करने वाले किसी फील्ड रिपोर्टर को अगर उसका दफ्तर दीपिका पादुकोण की प्रेस वार्ता में भेज रहा है तो उस रिपोर्टर के लिए उससे बड़ी सजा कोई हो ही नहीं सकती!
खैर...! अगस्त को बीतना था और वह बीता।
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अजय सर उस दिन काफी परेशान से थे।
काम करेंगे
सर, हम तो काम ही देख रहे हैं..
भेजें कुछ फाईल
भेजिए, प्राइयोरिटी पे देखेंगे..
फिर छह फाईल मेल में आई जिसका अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद करना था। जिस दिन फाईल आई उसके दो-तीन दिनों बाद ही पुणे में एक कार्यक्रम में ऑफिस की तरफ से भेजा गया। दुनियादारी खुद को विस्तारित करती चली गई और नतीजा सिफर रहा।
अपना कमिटमेंट पूरा न कर पाने का बहुत मलाल रहा।
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एक अनुभवी पत्रकार ने फेसबुक पर लिखा कि 2005 के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि उनके घर पर अखबार नहीं आया। उनका इशारा घनघोर बारिश की तरफ था, जिसकी भयावहता की तुलना वह 2005 की बारिश से कर रहे थे।
मेरे लिए मुंबई की यह तीसरी बारिश थी, जो कि पहली भयावह बारिश साबित हुई।
होंडा एक्टिवा अच्छी गाड़ी है, डूबने के बाद भी चलती रहती है। वडाला और पांच उद्यान के पास गाड़ी आधी डूबकर भी साथ चलती रही लेकिन हिंदमाता फ्लाईओवर के पास आकर मेरी ही हिम्मत नहीं हुई कि अब गाड़ी को पानी में उतारा जाये!
बारिश चलती रही और उसके समानांतर दफ्तर का फोन भी बरसता रहा! स्काइप पर पहली बार लाईव का अनुभव मिला! भाग्य का दिया सत्तू पराठा एक टैक्सीवाले के साथ उसकी टैक्सी में बैठकर खाते हुए जब शाम के 7 बज गये और दोनों मोबाइल डिस्चार्ज हो गया तो सिवाय जोखिम के कोई विकल्प नहीं बचा।
करीबियों के फोन तबतक ले चुका था और वह अनुभव बहुत ही सुनहरा रहा!
भाग्य ने पहली बार इतनी बारिश देखी थी और मैं दादर में फंसा हुआ था यह जानकर वह और पूरा परिवार परेशान हो चुका था।
आखिरकार रात आठ बजे जलजमाव के बीच गाड़ी को घुरकाते हुए वडाला तक पहुंचा। वडाला चर्च के पास बड़ा पेड़ गिरने के कारण आवागमन पूरी तरह ठप था। रात करीब ग्यारह बजे तक रास्ता बदलते हुए चार रास्ता तक आने के बाद तय किया कि गाड़ी वहीं छोड़कर कमरे की तरफ बढ़ा जाए क्योंकि थोड़ी ही दूरी से भारी जलजमाव शुरू हो चुका था।
29 अगस्त की वह रात मुंबई में अबतक की सबसे भयानक रात रही।
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पहली बार ऐसा हुआ कि ट्रैफिक पुलिस ने मेरी गाड़ी छूने की न केवल जुर्रत की बल्कि चालान भी काट दिया। विषम परिस्थिति में भी शायद ही मैंने कभी कोई ट्रैफिक कानून तोड़ा हो या फिर सड़क पर कोई स्टंटवाजी की हो!
सुषमा स्वराज के कार्यक्रम को कवर करने का दबाव अन्य खबरों को कवर करने के दबाव से ज्यादा होता है। अपनी ही गाड़ी लेकर बांद्रा कुर्ला कम्प्लेक्स के लिए निकल गया। अफरातफरी में सड़क के किनारे लगी गाड़ियों के बीच अपनी गाड़ी भी लगा दी और अपना आई कार्ड लेकर तेजी से विदेश भवन में घुसा।
फोटो साभार : रूही मलिक |
436 रुपये के चालान पर वापस गाड़ी मिल तो गई लेकिन एक कलंक लग गया जो अबतक कभी नहीं लगा था।
राज्यपाल के यहां कोई कार्यक्रम था उस दिन! विनित की बाईक थी और मैं पीछे बैठा था। वह बिना हेल्मेट के था और मेरे कहने पर उसने हंसकर टाल दिया। आगे नरीमन प्वांट के चौराहे पर ही ट्रैफिक पुलिस ने आगे हाथ देकर गाड़ी रुकवाई और उसका चालान कर दिया।
विनित को शायद लगा होगा कि मैं दूरदर्शन का हवाला देकर उसका चालान कटने से बचा लूंगा लेकिन जिस समय उसने हेल्मेट पहनने की मेरी सलाह को हल्के में लिया था उसी समय मैंने निर्णय ले लिया था कि इसका साथ देने का मतलब इसका मनोबल बढ़ाना है।
हमें नियम मानना चाहिए, जबतक कि नियम तोड़ने की कोई ठोस वजह नहीं हो।
डीएसएनजी स्टाफ ने ट्रैफिक पुलिस स्टेशन पर जो बात नजरों से कही वह वैसी ही थी जैसे विनित की थी!
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लॉ का रिजल्ट ठीक 31 अगस्त को आया।
भाग्य न होती तो लॉ का तीसरा और चौथा सेमेस्टर शायद पास ही नहीं कर पाता! जिस तरह चौथे पहर के ठीक पहले तीसरा पहर होता है वैसे ही 31 अगस्त से ठीक पहले अगस्त के कुल 30 दिन बीते। आखिरकार 31 अगस्त को जब भिंडी बाजार में पांच मंजिला इमारत के गिरने की रिपोर्टिंग में मैं व्यस्त रहा तो भाग्य का चहकते हुए फोन आया "डार्लिंग आप पास हो गये"!
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प्रिय सर,
वक्त की ऐसी मार है कि एक सांस में एक पोस्ट तक ब्लॉग पर नहीं लिख पाता! आज पांच सितंबर है।
ऐसे वक्त में भी आपको याद कर रहा हूं तो इसकी कुछ तो वजह होगी।
राम बहादुर सर एकमात्र वैसे व्यक्ति याद आते हैं जिन्हें मैं तहे दिल से बहुत पसंद करता था। उनकी चाय की दुकान थी और वह मुहल्ले के एक गरीब बुजुर्ग थे। उनकी दो बेटियां भी उसी स्कूल में पढ़ती थी जहां वह पढ़ाते थे। शायद अपनी बेटियों की पढ़ाई का खर्चा न उठा पाने के कारण वह उस स्कूल में पढ़ाकर हिसाब बराबर करते होंगे।
"Am" का मतलब एकबार उन्होंने कक्षा में पूछा था। शायद दूसरी या तीसरी की कक्षा थी। मेरे बगल में रवि बैठा था, उसने उसका मतलब "मां" कहा। मेरी बारी आई और मैंने "हूं" कहा। इस तरह Am का सही अर्थ बताने वाला मैं अकेला छात्र बना।
राम बहादुर सर ने कभी मुझे नहीं मारा। हमेशा मुझे उनकी आंखों में अपने लिए एक अलग जगह दिखती थी। वह मुझे सबसे ज्यादा प्यार करते थे और मुझे यह कहने में संकोच नहीं होता कि होश संभालने के बाद वह पहले ऐसे शिक्षक हुए जिन्हें मैं हमेशा याद रखता हूं।
आज भी लोहियानगर चौक से पूरब की ओर दो सौ मीटर चलने पर उनकी चाय दुकान है।
अंतिम शिक्षक जिसे मैंने बतौर शिक्षक सम्मान दिया वह शिशिर सिन्हा हुए।
कक्षा में बेवकूफ दिखने के डर से सवाल न कर पाना और झिझक के कारण चुप बैठना एक आम बात है! शेयर बाजार एक ऐसी चीज थी जिसे मैं लाख कोशिशों के बाद भी नहीं समझ पा रहा था।
उस दिन भारतीय जनसंचार संस्थान में शिशिर सिन्हा गेस्ट फेकल्टी के रूप में आये और मेरी झिझक को समझते हुए न केवल मेरा मनोबल बढ़ाया बल्कि मुझे शेयर मार्केट की सारी तकनीकियों को भी आसान शब्दों में समझा दिया।
यह सब साधारण था। असाधारण वह बात थी जो इस दौरान हो रही थी। कक्षा के कुछ छात्र हंस रहे थे और मैं उनकी हंसी के बीच बार-बार सर को फिर से समझाने के लिए कहता जा रहा था और सर फिर से समझाते जा रहे थे आखिरकार अंत में मैंने एक बड़ी जंग जीती और यह संयोग ही है कि उस कक्षा के करीब तीन साल बाद मैं बतौर बिजनेस करसपोंडेंट डीडी न्यूज में नियुक्त हुआ।
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और अंत में ...
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एक यादगार अगस्त... |
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