समय से संवाद
प्रिय तुम,
नहीं दी जाएगी माफी तुम्हें. शक था मुझे कि वह तुम्हारा ही कोई एजेंट है. मैंने लिखित में यह जाहिर भी किया था उसके पास कि जिस तरह "जॉली एलएलबी" में एक व्यक्ति अचानक याचिकाकर्ता के पास गवाह बन के आता है और कोर्ट में पलट जाता है वैसा ही खेल खेला तुमने. बाद में उस गवाह ने याचिकाकर्ता को बताया कि उसे तो बचाव पक्ष के वकील ने भेजा था. शक था मुझे कि उस शख्स को तुमने ही भेजा है और शक सही निकला. कितना देर हुआ यह समय तय करेगा लेकिन तुम्हारे इस दांव का लोहा मानता हूं मैं.
कतरनों की ढेर बनकर रह गई है जिंदगी. हर तरफ कुछ शब्द गिरे पड़े हैं. किसी से कराह की आवाज सुनाई दे रही है तो कोई शब्द आस पास के शब्दों के साथ मिलकर सुबक रहा है. कोई शब्द पश्चाताप कर रहा है तो कोई बहुत गीला हो चुका है और ऐसा लगता है कि अब कागज से टूट कर गिर जाएगा. कुछ शब्द ऐसे हैं कि ठोस हो चुके हैं और इतने ठोस हो चुके हैं कि खुरचने से भी नहीं मिट पा रहे हैं.
2003, 2005. 2008, 2009, 2015 और अब 2016. शनि की साढे साती भी एक समय तक रहती है लेकिन यह तो अंतहीन सा कुछ चलता सा महसूस होता है.
कभी-कभी ऐसा लगता है कि धरती पर नहीं बल्कि किसी कोर्ट में खड़ा हूं जहां न्यायाधीश मुझे मेरे ऊपर लगे आरोपों को पढ़ पढ़ कर सुना रहे हैं और हरेक आरोप पर सजा मुकर्रर कर रहे हैं. एक के बाद एक सजा सुनाई जा रही है. कुछ लंबी कुछ छोटी.
आपको इस अपराध के लिए ऐसा भाई दिया जाता है. इस अपराध के लिए आपको अकेला रखा जाता है जीवनभर. इस अपराध के लिए आपको मुंबई में खप जाने की सजा दी जाती है. उस अपराध के लिए आपके सभी रिश्तों को खत्म किया जाता है. और वह जो अपराध है उसके लिए आपको रोज भूखे पेट इधर से उधर भागने की सजा दी जाती है. न आरोप कम हो रहे हैं न ही सजा.
शर्म-लाज, मर्यादा, अनुशासन, सीमा ये सब फिजूल की बातें किसी को लगे तो उसपर तरस खाकर आगे ही बढा जा सकता है.
बहरहाल, लिखना एक बेजोर चीज है. लिखते रहने से अच्छा लगता है. कतरन चाहे जितनी हो. चाहे कितने पन्ने क्यूं न खराब हो जाएं लेकिन लिखना जरूरी है.
तुम, इंतजार करो. वक्त-वक्त की बात है. अभी तुम्हारा वक्त चल रहा है सालों से तो पूरी मनमानी कर डालो. जिस दिन वक्त ने करवट जरा सा भी बदला न बायें जेब में डालकर दो ऊंगलियों से मसल दिये जाओगे और चीं तक नहीं निकलेगी.
गुल्लक छूटा, बैलून भी छूटा और अब भूंजिया भी छूट गई.
अब एक गाना... "जो तू मेरा हमदर्द है सुहाना हर दर्द है"
बाकी फिर कभी...
No comments:
Post a Comment