छन से जो टूटे कोई सपना...
"पिछले दिनों कमरे के लिए दिल्ली के न्यू अशोक नगर स्थित "अग्रवाल प्रोपर्टीज" के आफिस जाना हुआ, अन्य प्रोपर्टी डीलरों से इतर उसने अपने आफिस में कांग्रेसी या भाजपाई नेता की फोटो न लगाकर अन्ना हजारे की फोटो लगाईं थी। उसपर विश्वास करने की कीमत मुझे अपने तीन हजार रूप्ये गंवा कर अदा करनी पड़ी"
शायद कुछ शेष रह गया होगा जो ऐसा हुआ। अप्रैल, 2011 से व्यवहारिक रूप से कुछ भी अच्छा नहीं हुआ है। दिल्ली जैसे शहर में इतने कम की नौकरी करते हुए कई बार थका था। आज भी डायरी पलटता हूं तो हर तीन-चार दिन में एक बार कमरे पर की गई उदास टिप्पणी जरूर दिख जाती है। कई बार जेल समझकर रहा तो कई बार सजा समझकर। घर समझकर कभी नहीं रहा! एक आइना तक नहीं खरीदा था दिवाल पर लगाने के लिए और न ही कोई फोटो लगाईं थी बेगूसराय में अपने रूम की तरह। कुछ भी नहीं क्योंकि यह घर नहीं एक जेल था बस।
एक "ड्रीम रूम" मन में बैठा था, जिसकी पहली निशानी थी ‘‘सेपरेट वाशरूम और सेपेर्ट किचेन‘‘ यानि समय से सुबह आठ बजे आफिस पहुंचने को लेकर आश्वस्त। रोज रोज आफिस देर से पहुंचने के बाद इतने बहाने अब तक बना चुका हूं कि अब कोई बहाना बचा ही नहीं। अंतिम बहाना आटो खराब होने का बनाया था, जहां तक याद है!‘‘सेपरेट किचन‘‘ जैसी कोई प्राथमिकता थी नहीं, लेकिन मिल जाए तो दो-चार सौ रूप्ये और कंसिडर किया जा सकता था। चूंकि आमदनी बहुत कम थी, इसलिए आफिस जाने-आने का किराया बचाने के लिए बाध्यता थी कि नया कमरा भी न्यू अशोक नगर में ही लिया जाए।
"मैं उस पर विश्वास करता रहा था तो उसके दो कारण थे। पहला यह कि उसने अपने उस छोटे से कमरानुमा दफ्तर में अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल और किरण वेदी के साथ अपनी एक फोटो खिंचा कर रखी थी"फोन लगाया तो नम्बर आफ। मुझे तो तब भी यकीन नहीं आया कि मैं ठगा जा चुका हूं, जब उसके आफिस के सामने की एक दुकानवाले ने बताया कि वो बुढा फ्राॅड है और कई बार पीटते पीटते बचा है। जब मैंने उस दुकानवाले से कहा कि वह देखने से तो ऐसा नहीं लगता तो उसने मुझे पूरी बात बताई। इसी बीच कुछ और लड़के वहां मिल गए। पूछने पर पता चला कि इन लड़कों से भी उसी कमरे को दिखाकर प्रोपर्टी वाले "बाबा" ने चार हजार रूप्ये ले लिये थे। आदत के अनुरूप मैंने मोबाइल से दिल्ली पुलिस को फोन किया और उनसे अपना लोकेशन बताकर मदद मांगी। अगले पंद्रह मिनट में पुलिस हमारे सामने थी और अगले बीस मिनट में मैं उन लड़कों के साथ न्यू अशोक नगर थाने में अपने ठगे जाने की शिकायत दर्ज करा रहा था।
अंत में: “लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे।” (सुदर्शन लिखित ''हार की जीत'' से साभार)

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