जवानी के वो दिन और सिगरेट का धुआं
अंकुश के कहने पर उसके साथ हो लिया था। वैसी भी शाम मनहूस हुआ करती थी। कोई साथी मिल जाय तो लुढ़कते लुढ़कते रेलवे क्रासिंग तक पहुंच जाते थे कभी कभी लाईन पार कर सिंघारा लिट्टी खा आते थे। अंकुश के साथ उसका दोस्त उदय था। उसे नया सीम कार्ड लेना था। दुकान पर जाकर पता लगा कि मामला पेंचीदा है। दरअसल वह सीम कार्ड पहले ही ले चुका था लेकिन दुकानदार ने उसे जो सीम दिया था वह चालू नहीं हो रहा था और उदय उससे सत्यापन के लिए दिये गए अपने दस्तावेज वापस मांग रहा था। दुकानदार का कहना था कि दस्तावेज कंपनी के पास भेज दिया गया है जबकि उदय का कहना था कि जब उसका सीम ही चालू नहीं हुआ तो दस्तावेज उसे वापस मिलना चाहिये। बात इस पर बनती दिख रही थी कि कुछ समय के बाद सीम चालू हो जायेगा लेकिन सीम चालू न होने पर दस्तावेज वापस करने की उसकी जिद से बात बिगड़ती जा रही थी। उदय और दुकानदार दोनों का जवान खून था सो वही हुआ जिसका डर था। गाली गलौज और देख लेने की धमकी के बाद हाथ चल गया। दोनो भिड़ गये। अंकुश और मैने बीचबचाव किया लेकिन तबतक उदय ने अपने रिंग से दुकानदार के सर पे दे मारा था और उसका सर फट गया था। लोग जुट गए। इसी बीच एक स्टाफ पर मेरी नजर पड़ी जिसे मैं जानता था। उसका नाम रौशन था। आसपास के दुकानदार और रास्ते पर जा रहे लोगों की भीड़ लग गई। अंकुश ने सूझबूझ का परिचय देते हुए उदय को वहां से निकाल लिया। हम लोग चुंकी पैदल थे सो वहां से घिसकने में आसानी हुई। तमाशबीन जबतक माजरा समझ पाते जबतक हमलोग आगे निकल चुके थे और रास्ता बदलते हुए सब अपने अपने घर पहुंच गये थे। उदय बेगूसराय में किराये के कमरे पर रहता था बाकी अंकुश और मेरा अपना घर था। अंकुश का घर मेरे घर के ठीक सामने था। रात करीब नौ बजे तक हमलोग वापस अपने घर पर थे।
गर्मी का मौसम था। रात करीब साढ़े दस बजे घरवालों के साथ बगीचे में बैठे सबलोग आपस में बातचीत कर रहे थे। अचानक किसी ने बाहर से ‘लक्की‘ आवाज दी। आवाज रौशन की थी। मेरी हालत पतली हो गई। साफ था कि दुकानदार अपने साथियों को लेकर मेरे घर पर आया था और देर रात आने से साफ था कि उसके इरादे अच्छे नहीं हैं। भैया, पापाजी, दीदी, जीजाजी सब घर में थे। प्रतिष्ठा दांव पर थी। मैंने जवाब में ‘जी, आते हैं‘ कह दिया। अगर आपके आवाज में मिठास है तो बड़ी बड़ी लड़ाईयां आप बिना हथियार उठाए जीत सकते हैं, मुझे इसका अनुभव कई बार मिल चुका था। घरवाले इतने बेवकूफ भी नहीं थे कि यह न समझ पाएं कि जवान बेटे को जब रात के ग्यारह बजे कुछ लड़के खोजने आएं तो कुछ गड़बड़ है। सबको समझाते बुझाते मैं बाहर आया। चार लड़के थे। बिना देर किये मैने रौशन को कहा कि घर के सामने नहीं। जवानी में मारपीट का कुछ उसूल होता है। मसलन अगर आप किसी को धोते हैं तो अपनी पीठ में भी मालिश करा के रहिये, दोस्त की बहन को लाइन मत मारिये, घर वालों के सामने मासूम और अनुशासित बच्चा बन के रहिये वगैरह, वगैरह। मैं उन लोगों को लेकर गली से दूर आ गया। उनके पास फाइटर, चैन, बेल्ट और शायद पिस्तौल भी था। उनमें से एक लगातार मोबाइल पर कुछ और लड़कों से सम्पर्क में था। उनलोगों ने पूरी फिल्डिंग लगाई थी। मैने साफ पूछा कि हमसे क्या चाहते हो और अगर मुझे मारने आए हो तो मारपीट के काम खत्म करो। उनमें से एक ने रंगवाज स्टाइल में उदय का घर पूछा। उनलोगों को निपटाने में मुझे खासी मशक्कत करनी पड़ी।
उन्हें बातो में उलझाते हुए मैं घर से काफी दूर निकल गया। रात के ग्यारह से अधिक हो रहे होंगे। इसी बीच दूर से अंधेरे में कोई आता दिखाई दिया। मैंने चाल से पहचान लिया और सब लड़कों से कह दिया कि भैया आ रहे हैं इन्हें कुछ नहीं पता चलना चाहिये, हम अपना हिसाब किताब बाद में कर लेंगे। चूंकि रौशन मुझे जानता था और उसे यह भी पता था कि लक्की घर में बस भैया से ही डरता है, इसलिए उसने उन लड़कों से मुझपर भरोसा करने के लिए मना लिया। भैया तबतक पास आ चुके थे। सब लड़कों ने चैन, बेल्ट, फाइटर वगैरह छुपा लिया। भैया का चेहरा गुस्सा से लाल था। उन्होंने हाथ नहीं चलाया बाकी यह एक लंबी सी डांट पिला कर यह कहकर वापस हो गये कि तुम घर पर आओ फिर बात करते हैं। उनलोगों को निपटा कर मैं घर पहुंचा तो सबके सामने ही भैया टूट पड़े। दिन भर दिमाग वैसे ही गरम था भैया का टूट पड़ना बर्दाश्त से बाहर था। कमरे में आया। पर्स उठाया और वापस बाहर आ गया। एक कठरे की दुकान पर मोमबत्ती जलाये बुढ़ा सुस्ता रहा था। मैंने दो सिगरेट मांगे। उसने पूछा कौन सी। मैंने कहा जो है दो। दो विल्स लेकर वापस आ गया। सीधे कमरे में आया। कमरा बंद। मां ने खाना खाने के लिए दरवाजे खोलने के ेिलए कहा। मैं चीख पड़ा। इतनी जोर से कि बगीचे में बैठे जो लोग जैसे थे भागे भागे अन्दर आ गये। सिगरेट का धुआ बाहर तक जा रहा था और मैंने पंखा पूरे रफ्तार में चला दिया था। आखिरकार सिगरेट खत्म होने के बाद दरवाजा खोला तो छोटे जीजाजी ने समझाने का प्रयास किया। मैं सबकी बात अनसुनी करके दूसरे छत पर आ गया। दूसरे छत से दूर आती जाती रेलगाड़ी साफ दिखाई देती थी। मैं चुपचाप रेलगाड़ी देख रहा था। थोड़ी देर बाद अप्रत्याशित रूप से वहां भैया आ गये। मुझे याद नहीं है कि उन्होंने उससे पहले कभी उतने प्यार से समझाया होगा। खूब समझाया उन्होंने। मंझले भैया का जिक्र भी हुआ। आखिर में उन्होंने मां पापाजी से माफी मांगने कहा। रात एक बज रहा होगा शायद। मां पापाजी के कमरे में आया। दोनों सोए लग रहे थे। आहट पर जाग गये। पापाजी रो रहे थे और मां की आंख भी गिली थी। मैं कुछ सोच पाने की स्थिति में नहीं था। माफी मांगी। उन्होंने माफ कर दिया। उन्हें विश्वास दिलाया कि आगे से सिगरेट छूंअूंगा भी नहीं। मां ने खाना दिया। रात करीब दो बजे खाना खाया और फिर सो गया। एक सच जो अबतक सिर्फ मैं ही जानता हूं कि उस रात मैंने सिगरेट सिर्फ जलाई थी और वह सुलगता रहे इसलिए पंखा तेज कर दिया था। कई बार मैंने उसे होंठ से जरूर सटाए थे लेकिन एक कश भी नहीं लिया था मैने। आधी सलाई मैंने बार बार सिगरेट जलाने में ही खत्म कर दी थी मुझे क्या पता था कि सिगरेट सुलगते रहने के लिए उसे लगातार फूंकते रहना पड़ता है। आज जब उन दिनों को याद करता हूं आंखे अनायास ही भरने लगती है।
No comments:
Post a Comment