स्कूल है आई आई एम सी
पीठ पर बस्ता टांग कर नजरें झुका कर सड़क पर पड़े किसी डब्बे को लात मारते हुए और चलते चलते अचानक दौर जाना, सड़क से सटे दुकान में रखे चॉकलेट के डब्बे को ललचाई नजरों से देखते हुए आगे बढ़ जाना और रास्ते में मिलने वाले दोस्तों से होमवर्क के बारे में उत्सुकता से पूछते रहना ये दुनियादारी से बेखबर किसी स्कूल के छात्र का दिनचर्या होता है। आई आई एम सी कहने को एशिया का सर्वोत्तम हिन्दी पत्रकारिता संस्थान हो लेकिन हिन्दी पत्रकारिता के ज्यादातर देशी विद्यार्थियों खासकर उत्तर भारतीयों के लिए आई आई एम सी एक स्कूल की तरह है जहां कोई बच्चा कक्षा में सर जी से शिकायत करता है कि उसे बेंच के पीछे से किसी ने चिकोटी काट ली है, कोई कहता है कि सर ये मुझे राखी सावंत कह कर चिढ़ाता है। देश के सभी कोने से समाज के प्रति अपना अलग नजरिया रखनेवाले गर्म युवक यहां आपस में एक दूसरे से नाराज होने पर न तो बेल्ट, फाइटर, हॉकी, चेन या विकेट से किसी सहपाठी की पिटाई करते हैं और न ही भाड़े पर लठैतों को बुलवाकर अपना कलेजा ढंढा करते हैं। आई आई एम सी में अगर कोई किसी से नाराज है या नाराजगी की चरम अवस्था में पहुंच चुका है तो वह कट्टिस हो जाता है और अगले ही कुछ दिन में फिर से वो दोनो कैंटीन में साथ साथ बैठ कर खाते देखे जाते हैं। | दिलीप मंडल की कक्षा में साद |
| न भुला सकने वाली कक्षाएं |
इंदौर के अमित पाठे के रूप में मुझे एक ऐसा दोस्त मिला जिसने न केवल मुझे गलत रास्ते पर जाने से रोका बल्कि अंधेरे में भी मेरा हाथ थामे रहा। कैंपस प्लेसमेंट को लेकर एक न्यूज पोर्टल में छपी मेरी टिप्पणी पर प्रधान सर बेहद नाराज थे। मैं उस दिन क्लास नहीं गया था। अमित पाठे का फोन आया कि प्रधान सर मुझे बुला रहे हैं। मैं तब कमरे पर खाना बना रहा था। जैसे तैसे ऑटो से कॉलेज पहुंचा। प्रधान सर ने कोई कसर नहीं छोड़ा और मेरी ऐसी क्लास ली कि शायद ही कभी किसी की ली होगी। इसके तुरंत बाद एक सहपाठी के एसएमएस ने मेरा सब्र तोड़ दिया। अगर अमित पाठे बीच में नहीं आया होता तो मारपीट पक्की थी। ये आई आई एम सी का मेरा सबसे कड़वा अनुभव था। इस अनुभव के आधार पर मै इतना तो कह ही सकता हूं कि अन्य संस्थानों में जहां छात्र आपस में लॉबिंग करके एक दूसरे को उकसाते हैं आई आई एम सी में ऐसा नहीं है। यहां का माहौल अगर जहरीला नहीं हो पाया है तो इसका श्रेय इंद्रजीत यादव, स्वपनल सोनल, तारा चंद मीणा, अंकित फ्रांसिस, रूपेश पाठक, रविकांत शर्मा, आशीष भारद्वाज, अखिल रंजन जैसे उन सहपाठियों को जाता है जिन्होंने कई बार अपने गुस्से को घोंट कर चीजों को नजरअंदाज कर दिया।
| चावला बाबु नहीं चावला सर |
| अर्चना मेम |
तनुश्री मैम हिंदी पत्रकारिता से परहेज करती हैं तो इसका श्रेय विधायक जी को खासतौर पर जाता है बाकी ‘जी नमस्ते नेटवर्क‘ सहित अंतिम सीट पर बैठने वाले तमाम मामलों के विशेषज्ञ को समान रूप से इसका श्रेय जाता है। तनुश्री मैम को याद रखने की एक खास वजह है। दरअसल फाइनल परीक्षा के अंतिम दिन मै बीच परीक्षा में पानी पीने के लिए बाहर निकला तो एक सर के केविन में जाकर कुछ पूछताछ कर ली। सर ने जब जवाब बता दिया तब उन्हें पता चला कि वो सवाल परीक्षा में पूछा गया है और परीक्षा जारी है। सर का गुस्सा देखनेलायक था। विश्वास टूटने के सारे समीकरण बन चुके थे। मैने क्षमायाचना की लेकिन फायदा नहीं हुआ। मैने निर्णय लिया कि इस सवाल को टच नहीं करूंगा और सर का विश्वास बना रहे इसलिए मैने कॉपी पर अपना नाम यह सोचकर लिख दिया कि अगर सर मेरी कॉपी जांचेगे तो उन्हें पता लग जाएगा कि मैने उनके द्वारा बताए जवाब को नहीं लिखा। सर से बाद में माफी तो मिल गई और विश्वास भी बना रहा लेकिन दूसरी आफत आ गई। तनुश्री मैम ने एक सहपाठी को कहकर बुलावा भेजा। मै डरते डरते पहुंचा तो जम कर डांट पिलाईं। कहा कि योगेश तुम हो...कितनी बार परीक्षा में बैठै हो... एन्सर सीट पर नाम लिखा जाता है...तुम्हारी कॉपी ओ एस डी के पास जाएगी...। मेरी हालत खराब थी ये दूसरा झटका था। मैम वैसे हिंदी पत्रकारिता के छात्रों से परहेज करती थी इसलिए चमचागिरी भी बेकार थी। मै धर्मसंकट में था नाम क्यूं लिखा यह बता नहीं सकता था और बिना बताए रहम की उम्मीद भी नहीं थी। लेकिन मेम ने मेरे परेशान चेहरे को देखकर हंसते हुए कहा कि उन्होंने मेरा नाम काट दिया है। मै मन ही मन नतमस्तक हो चुका था। तनुश्री मैम के क्लास में हमलोगों ने जितनी बदमाशी की आज वो सब याद आ रहा है।
| कलिका मेम |
हिंदी पत्रकारिता के सत्र समाप्ति पर हुए '' लोग आउट'' कार्यक्रम में जब अंग्रजी पत्रकारिता के एक छात्र ने अपने विचार रखे तो सब चकित रह गए. उक्त छात्र ने कहा कि उसने कहने को आई आई एम् सी में अंग्रेजी पत्रकारिता की पढाई की है लेकिन उसकी दोस्ती हिंदी पत्रकारिता के छात्रों से ही हो पाई. वो मानते हैं कि हिन्दी पत्रकारिता के छात्रों में एक विशेष आकर्षण है. आई आई एम सी का गोसाईं घर है हिंदी पत्रकारिता विभाग. अगले अंक में प्रधान सर और दिलीप सर के साथ अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करूँगा.
क्रमशः.
अपने अनुभवों का साझा किया तुमने वाकई में अच्छा काम किया यह अनुभव जिंदगी भर साथ रहेगा....
ReplyDeleteyour allegation that i am averse to hindi journalism is absolutely baseless...i dont remember that i ever differentiated between any of the department or its students.
ReplyDeleteI am shocked that you wrote like this.
@ Tanu: Mam, we respect you. It's not my allegation it's only an opinion or understanding... anyone can disagree at my opinion. Again saying We have no word for your contribution to Hindi Journalism.
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