Paise ka aankh ke samne aana jana...kapil...election in Nanded...uska utsah
Y K SHEETAL
JOURNALIST
Saturday, April 27, 2024
Saturday, April 13, 2024
2016 की वो
14 अप्रैल की सुबह
14 अप्रैल को चैत्यभूमि जाना कहने को तो एक असाइनमेंट है लेकिन 2016 की उस घटना के बाद वहां जाना एक दूसरे ही युग की याद दिला देता है। एक ऐसा युग जहां दूर तक अंधेरा पसरा था और चीख-पुकार के बीच किसी मददगार की तलाश थी। जो भी मददगार आया वह दबे पांव आया और उसी साल के अंत तक काफी कुछ ठीक कर दिया। खैर!
ऐसा क्या हुआ था तब? हमारे बीच 2015 से 2016 के बीच जो भी पनप रहा था उसपर 2016 के चढ़ते-चढ़ते इतना तेजाब डल गया था कि अब उस हरियाली का लंबे समय तक वैसे रहना असंभव हो गया था। तमाम छोटे-मोटे सपनों के दरकने या टूटने के आवाज आए दिन आते रहते थे और एक मायावी घेरा सा बन चुका था चारों ओर। बातें होते-होते फोन का कटना, फोन ऑफ रहना, टाईप किए जा रहे हर शब्द से चीख जैसा कुछ निकलना और ऐसे न जाने कितने अनुभव!
13 की रात कुछ भयानक घटा था। बातचीत के दौरान कुछ ऐसा था कि बेचैनी हद से ज्यादा बढ़ गई थी। एक फोन कटा। दूसरा फोन कटा। फोन का बिजी आना शुरू हुआ। फोन फिर कटा। कटता रहा। इस तरह देर रात अंत तक फोन कटता रहा और नंबर व्यस्त आता रहा। तब मुझे पहली बार ऐसा लगा था कि चाहे जो भी हो इस अंधेरे से हर हाल में निकलना होगा। कीमत जितनी भी हो जैसी भी हो, दी जाएगी लेकिन इस अंधेरे को चकमा देकर निकलना ही होगा अन्यथा कभी रोशनी नसीब न होगी शायद!
अगले दिन चैत्यभूमि में मैं अपनी टीम के साथ था। सवेरे के 7-8 बजे का उजाला शरीर को ऊर्जा से भरता जा रहा था। रोशनी पास के समुद्र को भी भेदती जा रही थी। मन में रात वाली घटना ऐसे दर्ज हो गई थी कि उसके ऊपर कोई रंग चढ़ ही नहीं पा रहा था। लगातार फोन का बिजी होना और फोन का घंटों तक कटता जाना कई सारे मायने निकालने को विवश कर रहा था, वह भी तब जब नकारात्मकता अपने चरम पर थी।
बहरहाल, सबकुछ छोड़कर एक कोने में थोड़ी देर बैठने के बाद फिर से कॉल लगाया। इस बार न तो फोन बिजी आया और न ही फोन कटा। फोन की पूरी रिंग खत्म होने से पहले फोन उठ गया। मन की रफ्तार कितनी तेज होती है यह उस दौर में महसूस किया जा रहा था। जो मन फोन करते वक्त था, उससे काफी अलग रिंग होते हुए और उससे बहुत-बहुत अलग फोन उठने के बाद। वही बात, वही अंदाज और वहीं पर जाकर पूर्ण विराम। शायद वह आखिरी बातचीत थी!
14 अप्रैल, 2016 के बाद आज आठवां 14 अप्रैल था। चैत्यभूमि पहुंचकर थोड़ी देर बैठा। कुछ तस्वीरें ली। वापस दफ्तर आ गया। क्या बीता इतने सालों में! मैं आज भी अकेला हूं यहां, तब भी अकेला था। इस बीच न जाने समुद्र में कितना पानी सूखा और कितना नया पानी आया!
बीतते-बीतते बीत जाएगा यह दौर भी,
जैसा बीतता आया है जमाने का हर दौर!
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Tuesday, April 9, 2024
बेचैनी
दौर-दर-दौर
दोस्त बनाने की उम्र बीत गई। रिश्तेदार अब नए कहां बनेंगे और दफ्तर तो यही आखिरी होगा ऐसा लगता है। फिर नया माहौल कैसे मिलेगा?
शंका का निदान कौन करेगा? कैसे करेगा और क्या कर पाएगा?
दिल्ली की वह दोपहर जो कमरे में पंखे की हवा खाते हुए बीतती थी कभी-कभी याद करने का मन करता है। गंदे कमरे में सफाई के निशान होते थे। टूटी खिड़कियों से आती रोशनी, बाहर का घुटनभरा माहौल, अंदर से बाहर देखने के लिए फेसबुक जैसे माध्यम और तमाम उम्मीदों और आशंकाओं के बीत वहां बीते दो-तीन साल कभी-कभी याद करने का मन करता है।
क्या था जो मैं तब चाहता था लेकिन अब नहीं चाहता हूं। नौकरी, शादी, पहचान! इसके बाद चौथी कोई चीज नहीं आती दिमाग में जो तब चला करता था उस बंद कमरे में। आज एक दशक से अधिक हो गए उस दौर को बीते हुए लेकिन बेचैनी आज भी उतनी ही है या ऐसे कहें कि उससे ज्यादा ही है बावजूद इसके कि ये तीनों चीजें अच्छे तरीके से उपलब्ध है। फिर बेचैनी की क्या वजह हो सकती है!
Saturday, April 6, 2024
सुकून-ए-कोना
तुम्हारा होना जरूरी है मेरे आसपास!
एक कुर्सी और एक टेबल!
घाटकोपर में 2014 में सेकंड हैंड ली गई वो कुर्सी-टेबल इतने समय तक चल जाएगी, सोचा नहीं था।
ऐसा कई बार होगा जब मैंने भाग्य को कहा होगा कि जब मैं इस टेबल-कुर्सी पर अपनी पोजीशन लेता हूं तो लगता है सबकुछ नियंत्रण में कर लूंगा। मुझे यहां बैठकर ऐसा लगता है कि किसी बड़े जहाज को मैं चला रहा हूं और सामने दूर-दूर तक बस पानी है। मैं चाहे तो दायां-बायां या इसकी गति कम-ज्यादा कर सकता हूं।
मेरा प्रयास तो यही होगा कि जबतक रहूं यह टेबल मेरे साथ रहे। भले ही मुझे कई बार ऐसा लगा कि इसके आकार कम होने के कारण दिक्कत हो रही है लेकिन फिर लगा कि जितने बड़े कमरे में मैं पिछले डेढ दशक से रह रहा हूं उसके हिसाब से तो इससे अच्छा दूसरा टेबल हो ही नहीं सकता है मेरे लिए।
इस टेबल पर ही मैंने अपने पूरे लॉ की पढ़ाई की औऱ इसी पर पढ़कर भाग्य भी सरकारी सेवा में आई। अब इस टेबल से और ज्यादा लगाव हो गया है।
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